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सत्ता दल के नेता सत्ता के मद में मस्त कार्यकर्ता त्रस्त सत्ताधारी पार्टी में कार्यकर्ताओं की अनदेखी पार्टी को कहीं भारी न पड़ जाए


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सत्ता दल के नेता सत्ता के मद में मस्त कार्यकर्ता त्रस्त

सत्ताधारी पार्टी में कार्यकर्ताओं की अनदेखी पार्टी को कहीं भारी न पड़ जाए।


जिला संगठन के नेताओं का मनमौजी रवैया कार्यकर्ताओं के भविष्य के लिए खतरा बन रहा


पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के आह्वान पर जो कार्यक्रम हो रहे हैं उसमें अब कार्यकर्ता भी नजर नहीं आ रहे है

किसी भी राजनीतिक दल के रीढ़ होते हैं उनके कार्यकर्ता जो नेता एवं पार्टी के लिए कर्मठ होकर दरी बिछाने से झंडा लगाने तक का कार्य करते हैं लेकिन उन कार्यकर्ताओं की जरूरत शायद राजनीतिक दलों के नेताओं को सिर्फ चुनाव के समय ही महसूस होती है चुनाव के बाद अक्सर देखने को मिलता है कि कार्यकर्ताओं को हासिए में रख दिया जाता है वैसा ही कुछ हाल कवर्धा जिले के सत्ताधारी पार्टी में दिखाई दे रहा है,इस पार्टी से एक बड़े नेता प्रदेश के बड़े पद पर तो पहुंच गए हैं लेकिन जो संगठन है या जो कार्यकर्ता है उसमें मतभेद खुले तौर पर देखा जा सकता है ,

जिले में जहां सत्ताधारी दल 20,000 से अधिक कार्यकर्ता होने का दावा करती है वही उनके कार्यक्रम में गिनती के ही लोग दिखाई दे रहे है ।


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कार्यकर्ताओं मे मद भेद खुल कर सामने आ रहा, वही जनता भी अब इन नेताओं के दोहरे चरित्र से वाक़िफ़ हो गए है।

जिसका नतीजा यह हो रहा है कि अब पार्टी के कार्यक्रम में सच्चे कार्यकर्ता नजर नहीं आ रहे ऐसे में अब चर्चा होने लगी है कि आगामी चुनाव में पार्टी की स्थिति कैसी रहेगी कहीं सत्ताधारी पार्टी ही नगर निगम और ग्राम पंचायत के चुनाव में विपक्ष में ना बैठ जाए......

अब आज के ही कार्यक्रम को देख लीजिए लगभग 300 की संख्या वाले ऑडिटोरियम में कार्यक्रम आयोजित है और कार्यक्रम वह जिसे केंद्रीय नेतृत्व ने आह्वान किया था, कार्यक्रम मे कुर्सियां खाली है उसे कार्यक्रम में गिनती के लोग ही दिखाई दे रहे हैं,

समाज के चौथे स्तंभ होने के नाते हमारा फर्ज है कि हम आईना दिखाएं लेकिन यदि कोई अपने सत्ता के मध्य में चूर होकर मस्त है तो उन्हें सच कहां दिखाई देगा. ...

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