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कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा विधि : परंपरा, श्रद्धा और संपूर्ण विधान।

Updated: Aug 16

VOICE OF STATE NEWS

KAWARDHA

कृष्ण जन्माष्टमी भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है। भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि को मध्यरात्रि में देवकी और वसुदेव के पुत्र के रूप में विष्णु के आठवें अवतार, श्रीकृष्ण का प्राकट्य हुआ। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि प्रेम, भक्ति और धर्म की विजय का संदेश भी देता है। इस दिन भक्तजन व्रत रखते हैं, उपवास करते हैं, मंदिर सजाते हैं और रात 12 बजे भगवान के जन्म का उत्सव मनाते हैं।


पूजा से पहले की तैयारी


कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा के लिए केवल विधि ही नहीं, भाव और स्वच्छता भी आवश्यक है। पूजा शुरू करने से पहले कुछ जरूरी तैयारियाँ इस प्रकार हैं–


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1. घर और मंदिर की सफाई – जन्माष्टमी से एक दिन

पहले घर को साफ करें और पूजा स्थान को गंगाजल से पवित्र करें।


2. बाल गोपाल का झूला–श्रीकृष्ण के जन्म के लिए सुंदर

झूला तैयार करें और उसे फूल-मालाओं व रंगीन कपड़ों से सजाएँ।


3. पूजा सामग्री–तुलसी पत्ते, मक्खन-मिश्री, पंचामृत, धूप, दीपक,

शंख, घंटी, गंगा जल, लाल और पीले कपड़े, अक्षत (चावल), फल,

मिष्ठान्न और नारियल अवश्य रखें।


4. मूर्ति या चित्र – बाल गोपाल की मूर्ति को स्नान और शृंगार के लिए तैयार करें। यदि मूर्ति न हो तो भगवान का चित्र भी उपयोग किया जा सकता है।


व्रत का महत्व और नियम

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कृष्ण जन्माष्टमी के दिन उपवास रखना अत्यंत फलदायी माना जाता है।

प्रातः स्नान कर संकल्प लें कि आप दिनभर व्रत रखेंगे।

दिनभर फलाहार करें और सात्त्विक आहार ही ग्रहण करें।

मन, वाणी और व्यवहार में शुद्धता रखें तथा भगवान का ध्यान करते रहें।

रात्रि 12 बजे भगवान के जन्म के बाद ही व्रत का पारण करें।


पूजा की विस्तृत विधि


1. संकल्प और ध्यान


पूजा स्थान पर आसन पर बैठकर भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करें।


हाथ में अक्षत, जल और फूल लेकर संकल्प लें –

“मैं भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक यह व्रत और पूजा संपन्न कर रहा/रही हूँ।”



2. गणेश पूजन


हर शुभ कार्य की शुरुआत गणेश पूजन से करें।


श्री गणेश को धूप, दीप, अक्षत और नैवेद्य अर्पित करें।


"ॐ गं गणपतये नमः" मंत्र का 11 बार जप करें।



3. कलश स्थापना


गंगाजल से भरे कलश पर आम्र पल्लव और नारियल रखें।


कलश पर स्वस्तिक बनाएं और इसे भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण का प्रतीक मानकर पूजन करें।



4. बाल गोपाल का अभिषेक


रात्रि 12 बजे भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल) से स्नान कराएँ।


स्नान के बाद शुद्ध जल से मूर्ति को धोकर नए वस्त्र पहनाएँ।


भगवान को फूल-मालाओं, मोर पंख, मुकुट और आभूषणों से सजाएँ।



5. मंत्रोच्चारण और भजन


"ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः" का जाप करें।


श्रीकृष्ण के भजन और कीर्तन गाएँ – जैसे “नंद के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की…”


मंदिर या पूजा स्थान में घंटी और शंख बजाकर वातावरण को पवित्र करें।



6. जन्म उत्सव और आरती


जैसे ही घड़ी में रात 12 बजे, भगवान का जन्मोत्सव मनाएँ।


बाल गोपाल को झूले में बैठाकर धीरे-धीरे झुलाएँ।


दीपक जलाकर श्रीकृष्ण की आरती करें और परिवार सहित प्रसन्न होकर ‘हर्षोल्लास’ से जयकार करें।




पूजा के दौरान विशेष ध्यान देने योग्य बातें


1. तुलसी का प्रयोग अवश्य करें–भगवान श्रीकृष्ण को तुलसी अत्यंत प्रिय है। बिना तुलसी के भोग अधूरा माना जाता है।

2. मक्खन-मिश्री का भोग – श्रीकृष्ण को बाल रूप में यही सबसे प्रिय है।

3. व्रत में सात्त्विकता बनाए रखें – लहसुन-प्याज और तामसिक भोजन से बचें।

4. रात्रि जागरण करें – यदि संभव हो तो जन्माष्टमी की रात भजन और कीर्तन करते हुए जागरण करें।

5. दान और सेवा – जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र और प्रसाद का दान करना पुण्यदायी है।


पूजा का समापन और व्रत पारण


रात्रि 12 बजे पूजा के बाद भगवान को नैवेद्य चढ़ाएँ और प्रसाद वितरित करें।


अगले दिन प्रातः ब्राह्मण भोजन कराकर या प्रसाद बांटकर व्रत का पारण करें।


अंत में भगवान श्रीकृष्ण से आशीर्वाद मांगें–


“हे नंदलाल! हमारे जीवन में सुख, शांति और प्रेम की धारा बनाए रखें।”


कृष्ण जन्माष्टमी का आध्यात्मिक संदेश


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धर्म की विजय–श्रीकृष्ण का जन्म अधर्म के विनाश और धर्म की स्थापना के लिए हुआ।


भक्ति और प्रेम का महत्व-कृष्ण लीला हमें बताती है कि प्रेम और भक्ति ही भगवान को आकर्षित करती है।


कर्म और कर्तव्य-गीता का संदेश है कि बिना फल की इच्छा के कर्म करते रहना ही सच्ची पूजा है।


कृष्ण जन्माष्टमी केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह जीवन में प्रेम, करुणा और धर्म के पालन का संदेश देती है। जब हम श्रद्धा और सच्चे भाव से पूजा करते हैं, तो केवल भगवान का आशीर्वाद ही नहीं मिलता, बल्कि परिवार और समाज में भी सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इस वर्ष भी आप श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव को पूरे उत्साह और पवित्रता के साथ मनाएँ, और अपने जीवन में श्रीकृष्ण की वाणी और कर्म का अनुसरण करें।

 
 
 

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